पदार्थान्वयभाषाः - (त्वष्टारम्) त्वक्षतीति त्वष्टा=जो इस सृष्टि को प्रलयकाल में परमाणुरूप कर देता है, उसका नाम त्वष्टा है (अग्रजाम्) अग्रे जाता अग्रजा=जो सबसे प्रथम हो अर्थात् सबका आदि मूल कारण हो, उसका नाम अग्रजा है (गोपाम्) गोपायतीति गोपाः=जो सर्वरक्षक हो, उसका नाम यहाँ गोपा है (पुरोयावानम्) जो सर्वाग्रणी है, उस देव को (आहुवे) हम उपास्य समझें, वही देव (इन्दुः) सबको प्रेमभाव से आर्द्र करनेवाला (इन्द्रः) परमैश्वर्य्यवाला (वृषा) सब कामनाओं की वर्षा करनेवाला (हरिः) और सब दुःखों को हर लेनेवाला (पवमानः) पवित्र और (प्रजापतिः) सब प्रजा का पालन करनेवाला है ॥९॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में परमात्मा ने सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति, प्रलयकर्त्ता पुरुषविशेष का इस ज्ञानयज्ञ में उपास्यरूप से निर्देश किया है और त्वष्टादि द्वितीयान्त इसलिये हैं कि उपासनात्मक क्रिया के ये सब कर्म हैं अर्थात् इनकी उपासना उक्त यज्ञ में की जाती है ॥९॥